श्री तिलक सेठी जी द्वारा रचित ग़ज़लों के इस प्रथम संकलन 'ग़ज़लांजलि' में एक अद्भुत सम्मोहन है। यह ग़ज़ल संग्रह इनकी काव्य प्रतिभा का अमिट हस्ताक्षर है। एक के बाद एक, हर ग़ज़ल बेहतरीन है, हर शेर बहुत उम्दा है तथा जीवन के फ़लसफ़े को इतनी खूबसूरती के साथ कलमबद्ध करने का एक सफल व सार्थक प्रयास है। निश्चित रूप से, इनकी यह कृति इनके काव्य-प्रधान व्यक्तित्व की प्रति छाया है।
डॉ. सेठी की लिखी हुई चार पंक्तियां मेरे दिल के बहुत करीब हैं-
कहकशाँ का एक ज़र्रा भी नहीं है ये ज़मीं
फिर बता औकात तेरी क्या भला है आदमी
चन्द्र सांसें ले के आया है ज़मीं का हर बशर
सोचता है वो मगर खुद को ख़ुदा से कम नहीं
मैं, डॉ. तिलक सेठी को इनके इस सार्थक साहित्यिक प्रयास के लिए बधाई देता हूं और इनके स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए यह विश्वास प्रकट करता हूँ कि यह काव्य संग्रह पाठकों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
-प्रोफेसर एच.एल. वर्मा,
कुलपति जगन्नाथ विश्वविद्यालय, जयपुर
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