योगवासिष्ठ बहुत ही अद्भुत ग्रन्थ है जो अद्वैत वेदान्त के हर सिद्धान्त की चर्चा करता है परन्तु यह इतना विशाल है कि विद्वान् भी इसे पढ़ने से कतराते हैं। इस बात को ध्यान में रख कर डा. कुलदीप धीमान ने इस ग्रन्थ के चौबीस हज़ार श्लोकों के सार को संक्षेप से सरल भाषा में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। उनकी यह रचना अंग्रेज़ी में भी उपलब्ध है। इससे पहले उन्होंने आचार्य रजनीश ओशो के विचारों को 'परम विद्रोही' पुस्तक में प्रस्तुत किया है। हाल ही में उनके पतञ्जलि योगसूत्र के व्यासभाष्य का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ है। शैवीय तन्त्र पर उनका शोधकार्य प्रकाशनाधीन है। डा. धीमान बीस वर्षों से पुनर्जन्म पर भी शोधकार्य कर रहे हैं और इस क्षेत्र में उन्हें अर्न्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। अब वे साङ्कख्य दर्शन पर कार्यरत हैं।
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